बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 गृह विज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 गृह विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 गृह विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना के बारे में बताइए।
उत्तर -
स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना
भारतीय अर्थव्यवस्था की मेरुदंड और आधारशिला है। भारत गाँवों का देश है। यहाँ की अधिकांश जनता खेती तथा खेती पर आधारित उद्योग-धन्धों पर निर्भर है। भारतीय महिलाएँ खेती-बाड़ी के कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेती हैं। मगर अफसोस इसका है कि भारतीय ग्रामीण महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं है। वे अशिक्षा, गरीबी, कुपोषण, अन्धविश्वास, परम्पराओं की शिकार हैं।
ग्रामीण स्त्रियों तथा बालकों का स्वास्थ्य उत्तम रहे, इसके लिये भारत सरकार द्वारा अनेक कल्याणकारी योजनाएँ बनायी एवं चलायी जा रही हैं। ये स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार इसी उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा चलाई गई है।
भारत को निर्धनता, गरीबी, भुखमरी से मुक्त कराने तथा ग्रामीण विकास का मूर्त रूप देने के लिये "स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना" का प्रारम्भ भारत सरकार द्वारा किया गया।
यह योजना 1 अप्रैल 1999 से सम्पूर्ण देश में चलायी जा रही है। इस योजना के अन्तर्गत "गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले ग्रामीणों की क्षमता में यथोचित वृद्धि की जाती है ताकि वे गरीबी के अभिशाप से मुक्त होकर अपने रहन-सहन के स्तर व जीवन स्तर को ऊँचा उठा सकें तथा सम्मानित जीवन जी सकें।"
इस योजना के अन्तर्गत यह निर्धारित किया गया है कि प्रत्येक विकास खण्ड में पाँच वर्षों में 30% तक निर्धन व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाए तथा उनके उत्थान हेतु आर्थिक गतिविधियों का संचालन किया जाए।
स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना (SGSY) में 'स्वयं सहायता समूह' की अवधारणा का एक रणनीतिक कदम है। यथार्थ में, स्वयं सहायता समूह की अवधारणा नाबार्ड तथा अन्य संस्थाओं के प्रयासों से सन् 1999 से तेजी से विकसित हुई है। इससे पहले भी स्वयं सहायता समूह का सम्पूर्ण देश-विदेश में अपना महत्व था।
भारत में, राष्ट्रीय स्तर पर बने आन्ध्र प्रदेश का स्वयं सहायता समूह का भी अपना अलग नाम है। ये स्वयं सहायता समूह न केवल एक सशक्त संगठन के रूप में देश के पटल पर उभरकर सामने आए हैं, अपितु लघु बचत के माध्यम से अल्प आय वर्गीय लोगों में स्वाभिमान, स्वयं सहायता, स्वरोजगार तथा उद्यमशीलता में भी वृद्धि करते हैं। इसी उद्देश्य से स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना में भी स्वयं सहायता समूहों का गठन एवं संचालन किया जा रहा है।
इस योजना में स्वयं सहायता समूहों को एक शक्तिशाली माध्यम माना गया है। इस योजना के अन्तर्गत कुल लाभान्वितों में से 50% अनुसूचित जाति / जनजाति, 40% महिलाएँ तथा 3% विकलांगों का होना अत्यावश्यक है। इसके साथ ही प्रति लाभार्थी विनियोग की राशि कम से कम 25000/- रु. होना आवश्यक है। इस योजना में स्वयं सहायता समूहों को प्रशिक्षण दिया जाता है।
स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना के उद्देश्य
स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना के उद्देश्य निम्नांकित हैं-
(1) स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना के विभिन्न पक्षों पर विचार-विमर्श करना।
(2) स्वयं सहायता समूहों को बैंकों से जोड़ने के बारे में विचार-विमर्श करना।
(3) संभागियों को स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना तथा स्वयं सहायता समूहों के गठन एवं प्रबन्धन से सम्बन्धित सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक पक्षों की जानकारी उपलब्ध कराना।
स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार की विषय-वस्तु
(1) स्वयं सहायता समूहों द्वारा आर्थिक गतिविधियों का चयन, क्रियान्वयन तथा बैंकों से सम्बन्ध स्थापित करना।
(2) स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना में स्वयं सहायता समूह की अवधारणा तैयार करना तथा उसकी प्रक्रिया को समझाना।
(3) स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना के उद्देश्यों को समझना तथा उसकी प्राप्ति हेतु विशेष परियोजनाएँ तैयार करना।
स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार एवं स्वयं सहायता समूह
भारत सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले तथा गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले परिवारों के लिये व्यक्तिगत लाभ की पूर्व में प्रचलित छः योजनाओं को समाप्त करके 1 अप्रैल 1999 को एक नई योजना का श्रीगणेश किया गया जिसका नाम रखा गया - "स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना" गरीबी उन्मूलन हेतु पूर्व में 6 योजनाएँ निम्न हैं -
(1) ट्राइसेम
(2) IRDP
(3) CITRA
(4) गंगा कल्याण योजना
(5) महिलाओं व बालकों का ग्रामीण क्षेत्रों में विकास।
उपर्युक्त सभी छ: योजनाओं को समाप्त कर जो नवीन योजना "स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना" (SGSY) लागू की गई है उसमें सभी योजनाओं के महत्वपूर्ण बिन्दुओं एवं उद्देश्यों को शामिल किया गया है।
इस योजना का मुख्य उद्देश्य - "ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले गरीब लोगों के लिये उन्हीं की क्षमताओं का उपयोग करके, ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में लघु उद्योग स्थापित कर स्वरोजगार उपलब्ध कराना।"
इस कार्यक्रम के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में निरन्तर आय सृजन के अवसर पैदा करने के लिये गरीब व्यक्तियों की क्षमता और हर क्षेत्र की भूमि-आधारित अन्य सम्भावनाओं के आधार पर बड़ी संख्या में लघु उद्यमों की स्थापना पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है। इसलिए इसमें विभिन्न घटकों जैसे गरीब व्यक्तियों में क्षमता पैदा करना, कौशल विकास प्रशिक्षण, ऋण, प्रौद्योगिक, विपणन और ढाँचागत सहायता पर विशेष बल दिया जाता है।
इस योजना में ग्रामीण गरीबों में कमजोर वर्गों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। बाद में स्वरोजगारियों में से कम से कम 50% अनुसूचित जाति / जनजाति, 40% महिलाओं और 3% विकलांगों को शामिल करना अनिवार्य बताया गया है।
स्वयं सहायता - समूह समान आर्थिक तथा सामाजिक पृष्ठभूमि वाले ऐसे ग्रामीण व्यक्तियों का एक ऐसा संगठन जो समूह के सदस्यों की गरीबी के उन्मूलन के लिये कृत संकल्प है तथा उद्यम करता है "स्वयं सहायता समूह" कहलाता है।
स्वयं सहायता समूह के प्रकार - स्वयं सहायता समूह निम्न तीन प्रकार के हो सकते-
(1) केवल महिलाओं का स्वयं सहायता समूह
(2) केवल पुरुषों का स्वयं सहायता समूह
(3) महिलाओं तथा पुरुषों का मिला-जुला स्वयं सहायता समूह |
स्वयं सहायता समूह की विशेषताएँ - यह निम्नलिखित हैं-
(1) स्वयं सहायता समूह में 10 से 20 लोगों, जिसमें केवल महिला, केवल पुरुष अथवा महिला व पुरुष दोनों ही हो सकते हैं। यह अनौपचारिक अथवा अपंजीकृत संगठन भी हो सकता है।
(2) समूह में एक ही परिवार के एक से अधिक सदस्य नहीं होने चाहिए।
(3) समूह के अध्यक्ष, सचिव तथा कोषाध्यक्ष इन तीनों पदों के लिये अलग-अलग परिवार के सदस्य होने चाहिए।
इस कार्यक्रम के तहत शुरू से अब तक 22.52 लाख स्वयं सहायता समूहों का गठन किया जा चुका है जिसमें 66.97 लाख स्वरोजगारी शामिल है।
स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना शुरू करने का सरकार का यही उद्देश्य है। गरीब और ग्रामीण इलाकों की उन्नति की जाए, गरीबों को पोषणयुक्त आहार दिए जाएँ।
गरीबी रेखा से नीचे आने वाले लोगों को बिना ब्याज के भी बैंकों से लोन देने की प्रक्रिया है। ग्रामीण इलाकों और गरीबों को अच्छा प्रशिक्षण देना है। प्रशिक्षण की जो भी लागत होगी वह सरकार देगी।
इस प्रकार यह योजना सरकार द्वारा गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले लोगों के लिये तथा उनके विकास की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिये है।
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- प्रश्न- सामुदायिक विकास से आप क्या समझते हैं? सामुदायिक विकास कार्यक्रम की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- सामुदायिक विकास योजना का क्षेत्र एवं उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामुदायिक विकास कार्यक्रम के उद्देश्यों को विस्तारपूर्वक समझाइए।
- प्रश्न- सामुदायिक विकास की विधियों को समझाइये।
- प्रश्न- सामुदायिक विकास कार्यक्रम के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामुदायिक विकास की विशेषताएँ बताओ।
- प्रश्न- सामुदायिक विकास के मूल तत्व क्या हैं?
- प्रश्न- सामुदायिक विकास के सिद्धान्त बताओ।
- प्रश्न- सामुदायिक विकास कार्यक्रम की सफलता हेतु सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- सामुदायिक विकास कार्यक्रम क्या है?
- प्रश्न- सामुदायिक विकास योजना संगठन को विस्तार से समझाइए।
- प्रश्न- सामुदायिक संगठन से आप क्या समझते हैं? सामुदायिक संगठन को परिभाषित करते हुए इसकी विभिन्न परिभाषाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामुदायिक संगठन की विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामुदायिक संगठन के विभिन्न प्रकारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामुदायिक विकास संगठन की सैद्धान्तिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
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- प्रश्न- सामुदायिक संगठन की आवश्यकता क्यों है?
- प्रश्न- सामुदायिक विकास संगठन के दर्शन पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
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- प्रश्न- सामुदायिक विकास प्रक्रिया के अन्तर्गत सामुदायिक विकास संगठन कितनी अवस्थाओं से गुजरता है?
- प्रश्न- सामुदायिक विकास संगठन की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- सामुदायिक संगठन और सामुदायिक विकास में अंतर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामुदायिक विकास संगठन और सामुदायिक क्रिया में अंतर बताइये।
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- प्रश्न- सामुदायिक विकास में सामुदायिक विकास संगठन की सार्थकता एवं भूमिका का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा से आप क्या समझते हैं? गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा का क्षेत्र समझाइये।
- प्रश्न- गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा के उद्देश्यों का विस्तार से वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- गृह विज्ञान प्रसार शिक्षा की विशेषताएँ समझाइयें।
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